भारत में गरीबी और असमानता की समीक्षा डॉ. कंचन जैन. भारत, विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, गरीबी और आय असमानता की दोहरी चुनौतियों से लगातार जूझ रहा है। ये मुद्दे न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करते हैं, बल्कि देश के समावेशी और सतत विकास के मार्ग में भी बाधा उत्पन्न करते हैं। इस समीक्षा में, हम भारत में गरीबी और असमानता के कारणों और प्रभावों, इन समस्याओं से निपटने के लिए सरकार की प्रमुख नीतियों और कार्यक्रमों, आय असमानता के वर्तमान आंकड़ों, इसके सामाजिक और आर्थिक परिणामों और समावेशी विकास की राह में आने वाली चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।1. गरीबी के कारण और प्रभावभारत में गरीबी एक बहुआयामी घटना है जिसके कई अंतर्निहित कारण हैं:ऐतिहासिक और संरचनात्मक कारक: औपनिवेशिक विरासत, भूमि सुधारों की अपर्याप्तता, और जाति-आधारित सामाजिक स्तरीकरण ने ऐतिहासिक रूप से कुछ वर्गों को आर्थिक अवसरों से वंचित रखा है।जनसंख्या वृद्धि और निर्भरता अनुपात: तीव्र जनसंख्या वृद्धि, विशेषकर निचले आय वर्ग में, प्रति व्यक्ति संसाधनों पर दबाव बढ़ाती है और आर्थिक उन्नति को बाधित करती है। उच्च निर्भरता अनुपात (कार्यरत आबादी पर आश्रित गैर-कार्यरत आबादी) परिवारों को गरीबी से बाहर निकलने में मुश्किल पैदा करता है।निम्न कृषि उत्पादकता और ग्रामीण संकट: भारत की एक बड़ी आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर है, जहाँ मौसमी बेरोजगारी, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, छोटे जोत और ऋणग्रस्तता आम समस्याएं हैं, जो ग्रामीण गरीबी को बढ़ावा देती हैं।शिक्षा और कौशल की कमी: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास तक सीमित पहुँच गरीब आबादी को उच्च-आय वाले रोजगार के अवसरों से वंचित करती है। निरक्षरता और कौशल की कमी उन्हें निम्न-कुशल, कम वेतन वाले कार्यों तक सीमित कर देती है।स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: खराब स्वास्थ्य और चिकित्सा खर्च परिवारों को गरीबी के दुष्चक्र में धकेल सकते हैं। पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं की कमी उत्पादकता को कम करती है।आधारभूत संरचना का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, बिजली, जल और स्वच्छता जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी आर्थिक गतिविधियों को बाधित करती है और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।मुद्रास्फीति और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें: आवश्यक वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि, गरीब परिवारों की क्रय शक्ति को कम करती है, जिससे वे और अधिक असुरक्षित हो जाते हैं।गरीबी के प्रभाव दूरगामी होते हैं:मानव पूंजी का क्षरण: कुपोषण, खराब स्वास्थ्य और शिक्षा की कमी बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को बाधित करती है, जिससे उनकी भविष्य की उत्पादकता प्रभावित होती है।सामाजिक अस्थिरता: गरीबी अक्सर अपराध, सामाजिक अशांति और संघर्ष को जन्म देती है क्योंकि वंचित वर्ग न्याय और अवसरों से वंचित महसूस करते हैं।आर्थिक विकास में बाधा: निम्न क्रय शक्ति, कम निवेश और अकुशल श्रम बल समग्र आर्थिक विकास को धीमा करते हैं।पर्यावरणीय क्षरण: गरीबी अक्सर प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन की ओर ले जाती है, क्योंकि लोग अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्यावरण पर दबाव डालते हैं।2. सरकार की नीतियां और कार्यक्रमभारत सरकार ने गरीबी और असमानता को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण नीतियां और कार्यक्रम चलाए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख पहलें निम्नलिखित हैं:महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम : 2005 में शुरू की गई यह योजना ग्रामीण परिवारों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के गारंटीकृत मजदूरी रोजगार का अधिकार प्रदान करती है। इसका उद्देश्य ग्रामीण आजीविका सुरक्षा बढ़ाना और ग्रामीण गरीबों को सामाजिक सुरक्षा कवच प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण अवसंरचना के निर्माण में भी सहायक है।प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि : यह योजना 2019 में शुरू की गई थी, जिसके तहत पात्र किसान परिवारों को प्रति वर्ष ₹6,000 की वित्तीय सहायता सीधे उनके बैंक खातों में तीन समान किस्तों में प्रदान की जाती है। इसका उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि करना और उनकी कृषि आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करना है।राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम , 2013: यह अधिनियम लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% तक को रियायती दरों पर खाद्यान्न प्राप्त करने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है। इसका लक्ष्य सभी के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है।प्रधानमंत्री जन धन योजना : 2014 में शुरू की गई यह योजना वित्तीय समावेशन के लिए एक राष्ट्रीय मिशन है, जिसका उद्देश्य प्रत्येक घर को बैंकिंग सेवाओं (बचत खाता, जमा खाता, क्रेडिट, बीमा, पेंशन) तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करना है। यह सीधे लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से सरकारी सब्सिडी को कुशलतापूर्वक वितरित करने में मदद करता है।आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना - : यह योजना 2018 में शुरू की गई दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा योजना है, जो लगभग 10.74 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों (लगभग 50 करोड़ लाभार्थी) को प्रति परिवार प्रति वर्ष ₹5 लाख का स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करती है।प्रधानमंत्री आवास योजना : इसका उद्देश्य 2022 तक "सभी के लिए आवास" प्रदान करना है, जिसमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के गरीब परिवारों को किफायती घर उपलब्ध कराना शामिल है।कौशल भारत मिशन इस मिशन का लक्ष्य भारतीय युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल के साथ सशक्त बनाना है ताकि उन्हें रोजगार योग्य बनाया जा सके और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया जा सके।इन कार्यक्रमों ने गरीबी कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसा कि विभिन्न रिपोर्टों से भी स्पष्ट होता है। उदाहरण के लिए, नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत में पिछले 9 वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकले हैं।3. आय असमानता के आंकड़े और परिणामभारत में आय असमानता एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। विभिन्न रिपोर्टें इस बढ़ती खाई को उजागर करती हैं:ऑक्सफैम रिपोर्ट: ऑक्सफैम की 2023 की रिपोर्ट "सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट" के अनुसार, भारत में सबसे अमीर 1% लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40% से अधिक हिस्सा है, जबकि नीचे की 50% आबादी के पास केवल 3% है। यह दर्शाता है कि धन का वितरण अत्यंत विषम है।विश्व असमानता रिपोर्ट 2022: इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है, जहां शीर्ष 10% आबादी के पास राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा है, जबकि नीचे की 50% आबादी के पास सिर्फ 13% है।आय असमानता के सामाजिक और आर्थिक परिणाम गंभीर होते हैं:सामाजिक ध्रुवीकरण और अशांति: अत्यधिक असमानता समाज के विभिन्न वर्गों के बीच तनाव और विभाजन पैदा करती है, जिससे सामाजिक एकजुटता कमजोर होती है और कभी-कभी विरोध प्रदर्शन या अशांति भी हो सकती है।अवसरों की असमानता: आय असमानता शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सेवाओं तक पहुंच में असमानता को जन्म देती है, जिससे वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए जीवन में सफल होना मुश्किल हो जाता है। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी गरीबी के दुष्चक्र को बढ़ावा देता है।कमजोर मांग और आर्थिक अस्थिरता: जब धन कुछ ही हाथों में केंद्रित होता है, तो कुल मांग कम हो सकती है, क्योंकि गरीब और मध्यम वर्ग के पास खरीदने की शक्ति कम होती है। यह आर्थिक विकास को बाधित कर सकता है और वित्तीय अस्थिरता पैदा कर सकता है।लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर प्रभाव: धन का अत्यधिक केंद्रीकरण राजनीतिक प्रभाव को भी विकृत कर सकता है, जिससे धनवान लोगों के हितों को प्राथमिकता मिल सकती है, और गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों की आवाज दब सकती है।मानव विकास सूचकांक (HDI) में गिरावट: असमानता मानव विकास के संकेतकों (शिक्षा, स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा) में गिरावट का कारण बनती है, क्योंकि एक बड़ा वर्ग इन आवश्यक सेवाओं तक पहुंचने में असमर्थ रहता है।4. समावेशी विकास के लिए चुनौतियांसमावेशी विकास का अर्थ है ऐसा विकास जो समाज के सभी वर्गों तक पहुँचे, जिससे किसी को भी पीछे न छोड़ा जाए। भारत में समावेशी विकास की राह में कई चुनौतियाँ हैं:गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच: भले ही सरकारी कार्यक्रम मौजूद हों, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है, खासकर ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में।कौशल अंतराल: बढ़ती अर्थव्यवस्था की मांगों और उपलब्ध कार्यबल के कौशल के बीच एक बड़ा अंतर है। उद्योगों की जरूरतों के अनुसार युवाओं को प्रशिक्षित करना महत्वपूर्ण है।औपचारिक रोजगार का अभाव: भारत में बड़ी संख्या में लोग अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, जहाँ उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ और उचित मजदूरी नहीं मिलती। औपचारिक रोजगार सृजन एक चुनौती है।डिजिटल डिवाइड: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट कनेक्टिविटी में महत्वपूर्ण अंतर है, जो डिजिटल सेवाओं के लाभों को सभी तक पहुंचने से रोकता है।लैंगिक असमानता: महिलाओं की शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक भागीदारी में अंतराल अभी भी मौजूद हैं, जो समावेशी विकास में बाधा डालते हैं।पर्यावरणीय स्थिरता: आर्थिक विकास अक्सर पर्यावरणीय लागत पर होता है। सतत विकास सुनिश्चित करना, जो वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करे, एक जटिल चुनौती है।शासन और कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियां: नीतियों और कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, और लक्षित लाभार्थियों तक लाभ पहुंचाना हमेशा एक चुनौती रही है।निष्कर्षत: भारत में गरीबी और असमानता की चुनौतियां जटिल और बहुस्तरीय हैं। जबकि सरकार ने इन मुद्दों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जैसे कि मनरेगा और पीएम-किसान जैसे कार्यक्रम, आय असमानता अभी भी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास और डिजिटल पहुंच में निवेश को बढ़ाना आवश्यक है। इसके साथ ही, एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा जाल, प्रगतिशील कराधान नीतियां और प्रभावी शासन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा ताकि देश की समृद्धि का लाभ समाज के सभी वर्गों तक समान रूप से पहुँच सके, और "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" का लक्ष्य वास्तव में साकार हो सके।

भारत में गरीबी और असमानता की  समीक्षा डॉ. कंचन जैन.                                                                                        
Previous Post Next Post