डॉ उमेश शर्मा का भावुक सन्देश - "आज बांग्लादेश का कोई भी हिंदू जात-पात व ऊंच-नीच और अपनी जाति की श्रेष्ठता के लिए परेशान नहीं है""आज वो परेशान है तो सिर्फ अपनी, अपने बच्चों की जान और घर की महिलाओं की इज्जत बचाने के लिए". उत्तर प्रदेश, संजय सिंह। बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के अमानवीय नरसंहार पर दुःख व्यक्त करते हुए डॉ उमेश शर्मा ने कहा कि आज बांग्लादेश का कोई भी हिंदू जात-पात व ऊंच-नीच और अपनी जाति की श्रेष्ठता के लिए परेशान नहीं है। आज बांग्लादेश का कोई हिंदू टैक्स के लिए परेशान नहीं है, महंगाई के लिए परेशान नहीं है, बेरोजगारी के लिए परेशान नहीं है। फ्री बिजली पानी के लिए परेशान नहीं है, गटर और सड़क के लिए परेशान नहीं हैं। वो आज परेशान है तो सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए अपने बच्चों की जान बचाने के लिए आज वो परेशान है तो सिर्फ अपने घर की महिलाओं की इज्जत बचाने के लिए आज उसकी परेशानी सिर्फ अस्तित्व बचाना है। उसका आज आपका कल न बने इसलिए सभी हिन्दू मिलकर एक स्वर में उसके लिए आप आज आवाज उठाइये कुछ दिन बाकी सब भूल कर सिर्फ हिन्दू बन जाइये।आज, “शांति” सिर्फ़ एक शब्द बनकर रह गई है, हकीकत है उत्पीड़नउन्होंने आगे कहा कि दिपु दास की सिर्फ़ हत्या नहीं की गई उन्हें ऐसी अमानवीय क्रूरता का शिकार बनाया गया जो 21वीं सदी को शर्मसार कर देती है। दिनदहाड़े ऐसा दानवी कृत्य मानवता और कानून व्यवस्था के पूरी तरह टूट जाने का संकेत है। इतिहास बलिदान को याद रखता है लेकिन आज वही धरती, जिसे कभी भारतीयों के खून से आज़ादी मिली थी, मासूम हिन्दू अल्पसंख्यकों के खून से सनी जा रही है। आज, शांति सिर्फ़ एक शब्द बनकर रह गई है। हकीकत है अमानवीय क्रूर उत्पीड़न। यह कोई अचानक भड़की अराजकता नहीं है, बल्कि हर हिंदू, बौद्ध, सिख और ईसाई नागरिक की आस्था और उसके अस्तित्व पर जानबूझकर किया गया क्रूर हमला है। हिंसा का यह सिलसिला साफ़ और निर्मम है। आखिर में उन्होंने कहा कि मेरा हृदय दिपु दास की आत्मा के लिए प्रार्थना करता है। मैं उनके परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएँ प्रकट करता हूँ, जिन्हें ऐसा असहनीय और अमानवीय दुख सहना पड़ा है जिसे शब्दों में बयान करना भी मुश्किल है। यह एक व्यवस्थित उत्पीड़न है, जिसे दुनिया लगातार अनदेखा कर रही है। मैं बांग्लादेश के नेतृत्व से अपील करता हूँ कि वे केवल निंदा के शब्दों से आगे बढ़ें और देश में स्थिरता बहाल करें। हर हिंदू, बौद्ध, सिख और ईसाई नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करना आपकी जिम्मेदारी है। मयमनसिंह की इस घटना के दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए, ताकि यह साफ़ हो सके कि कोई भी भीड़ क़ानून से ऊपर नहीं है। मैं सभी से आग्रह करता हूँ कि वे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की पीड़ा पर आँखें मूँदकर न बैठें। चुनिंदा चुप्पी, मानवाधिकारों के साथ विश्वासघात है। हम चुप नहीं रह सकते और न ही रहेंगे।

डॉ उमेश शर्मा का भावुक सन्देश -                                                    "आज बांग्लादेश का कोई भी हिंदू जात-पात व ऊंच-नीच और अपनी जाति की श्रेष्ठता के लिए परेशान नहीं है""आज वो परेशान है तो सिर्फ अपनी, अपने बच्चों की जान और घर की महिलाओं की इज्जत बचाने के लिए".            
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